Raaj-Sinhasan - 1 in Hindi Classic Stories by Saroj Verma books and stories PDF | राज-सिंहासन--भाग(१)

Featured Books
Categories
Share

राज-सिंहासन--भाग(१)

सूरजगढ़ के राजा सोनभद्र अपने कक्ष में अत्यधिक चिन्तित अवस्था में टहल रहें हैं,उनके मस्तिष्क की सिलवटें बता रहीं हैं कि उन्हें किसी घोर चिन्ता ने आ घेरा है,तभी उनके महामंत्री भानसिंह ने उनके कक्ष में प्रवेश किया और महाराज सोनभद्र से बोले ......
महाराज! आप यूँ चिन्तित ना हो,ईश्वर की कृपा से सब मंगल ही होगा।।
हमें भी यही आशा है महामंत्री जी!,महाराज सोनभद्र ने कहा।।
महाराज! आपकी होने वाली सन्तान और महारानी को कुछ नहीं होगा,उन पर हम सब का आशीर्वाद है,महामंत्री भानसिंह बोले।।
ईश्वर करें कि आपका कहा सच हो जाए,महाराज सोनभद्र बोले।।
तभी महल की एक दासी ने भागते हुए महाराज सोनभद्र के कक्ष में प्रवेश किया और बोली____
बधाई हो महाराज! महारानी ने एक सुन्दर और स्वस्थ बालक को जन्म दिया है....
सच! हम पिता बन गए,महारानी कैसीं हैं?महाराज सोनभद्र ने दासी से पूछा___
जी वें भी एकदम स्वस्थ हैं,किन्तु अभी अचेत हैं,दासी बोली।।
ये लो हमारी ओर से ये शुभ समाचार सुनाने के लिए भेंट स्वीकार करो___
महाराज ने अपने गले से मोतियों का हार दासी को देते हुए कहा___
तभी महामंत्री भानसिंह ने महाराज को बधाई देते हुए कहा___
बधाई हो महाराज! हमारे राज्य के उत्तराधिकारी के शुभ चरण इस धरती पर पड़ चुकें,अब तो तरंगों की भाँति उठतीं अपने मस्तिष्क की रेखाओं को विराम दीजिए....
हाँ! महामंत्री जी! अब हमारी सारीं चिन्ताएं दूर हो चुकीं हैं,आप शीघ्र ही राजज्योतिषी को बुलावा भेज दीजिए कि यहाँ पधारकर राजकुमार की जन्मकुण्डली बनाएं,राजज्योतिषी के आने पर ही हम राजकुमार और महारानी से मिलेंगे,महाराज सोनभद्र बोले।।
जी,महाराज! मैं स्वयं ही उन्हें लेकर आता हूँ,महामंत्री भानसिंह बोले।।
यही उचित रहेगा महामंत्री जी,महाराज सोनभद्र बोले।।
जो आज्ञा महाराज! मैं शीघ्र ही उन्हें लाने के लिए निकलता हूँ और इतना कहकर महामंत्री भानसिंह ,राजज्योतिषी को लाने निकल पड़े___
कुछ समय के पश्चात राजज्योतिषी महल में पधार गए,तब तक महारानी भी चेतन अवस्था में आ गईं थीं,तब महाराज ने राजज्योतिषी से राजकुमार को कक्ष से बाहर निकालने की शुभ घड़ी विचारने को कहा और पूछा कि मेरे राजकुमार के भाग्य में क्या है?
राजज्योतिषी महारानी के कक्ष में गए और नन्हे बालक के मस्तिष्क को देखकर कुछ सोच में पड़ गए___
उन्होंने अपनी शंका मिटाने के लिए एक बार पुनः राजकुमार के मस्तिष्क को देखा और दुखी मन से कक्ष से बाहर आएं....
तब महाराज ने राजज्योतिषी के चिन्तित मुँख को देखकर पूछा___
क्या हुआ ज्योतिषी जी? कोई बड़ी चिन्ता है,क्योंकि आपके मुँख के भाव तो यही कह रहे हैं,
जी,महाराज! कुछ ऐसा ही समझ लीजिए,ज्योतिषी जी बोले___
क्या कोई संकट है राजकुमार के सिर पर? महाराज सोनभद्र ने राजज्योतिषी से पूछा।।
संकट राजकुमार के सिर पर नहीं आपके सिर पर हैं,राजज्योतिषी जी बोले।।
आपका तात्पर्य मैं कुछ समझा नहीं,महाराज सोनभद्र बोले।।
कारण ये है महाराज!कि राजकुमार को ग्यारह वर्ष का होने तक आपसे अलग रहना होगा,नहीं तो आपके प्राणों पर संकट आ सकता है,राजज्योतिषी बोले।।
मैं अपने पुत्र से अलग नहीं हो सकता,ये कदापि ना होगा,ज्योतिषी जी! इसका कोई तो समाधान होगा,आप कोई भी यज्ञ करें,कोई भी दान करवाएं,कृपया इस विपत्ति से आप ही मुझे उबार सकतें हैं,महाराज सोनभद्र बोले।।
नहीं महाराज! इस समस्या का केवल एक ही समाधान है कि आपको राजकुमार से अलग होना होगा,ग्यारह वर्षो तक आप को उनका मुँख देखना निषेध हैं,राजज्योतिषी बोले___
ये कैसा सुख दिया है ईश्वर ने मुझे? सन्तान होकर भी मैं ग्यारह वर्षो तक निसंतान होकर रहूँ,महाराज सोनभद्र बोले।।
महाराज! यही नियति है,विधाता ने कदाचित आपके भाग्य में यही लिखा है,राजज्योतिषी जी बोले।।
किन्तु,कैसे मैं राजकुमार से इतने वर्षो तक अलग रहूँगा,महाराज बोले।।
तभी एक दासी महारानी के कक्ष से बाहर आकर बोली....
महाराज! आपको महारानी ने अपने कक्ष में बुलवा भेजा.....
उनसे कहो कि हम आते हैं,महाराज सोनभद्र बोले।।
किन्तु महाराज! उन्होंने कहा कि आप कुछ समय पश्चात ही उनके कक्ष में पधारें,क्योंकि राजकुमार अभी उनके कक्ष में हैं, धायमाता हीरादेवी उन्हें लेकर किसी और कक्ष में ले जाएं तभी आप उनके कक्ष में जा सकते हैं,ऐसा महारानी ने कहा है.....
ये कैसी बिडम्बना है,मेरे ईश्वर!क्या इस समस्या का कोई समाधान नहीं है? महाराज बोले....
तभी महामंत्री भानसिंह बोले___
महाराज ! राजकुमार की धाय माँ अब से मेरी बहन हीरादेवीं हैं,मैने ही अपनी बहन से राजकुमार को सम्भालने के लिए कहा है,मैं किसी अपरिचित महिला को इस कार्य के लिए नियुक्त ना कर सका।।
महामंत्री जी! बहुत बहुत उपकार आपका,मैं कैसे आपकी इस कृतज्ञता का बोझ उतार पाऊँगा,महाराज सोनभद्र बोले.....
इसमें कृतज्ञता कैसी महाराज! मेरी बड़ी बहन निसंतान है,उपकार तो आपने उस पर किया है,आपके राजकुमार के द्वारा वो ममता से अपना परिचय करेगी,महामंत्री भान सिंह बोले।।
इस प्रकार कुछ समय के पश्चात महाराज ने महारानी के कक्ष में प्रवेश किया___

क्रमशः....
सरोज वर्मा...